छत्तीसगढ़ धार्मिक छेत्र के प्रमुख व्यक्ति | Prominent people of Chhattisgarh Religious area

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छत्तीसगढ़ धार्मिक छेत्र के प्रमुख व्यक्ति | Prominent people of Chhattisgarh Religious area

छत्तीसगढ़ धार्मिक छेत्र के प्रमुख व्यक्ति | Prominent people of Chhattisgarh religious area

छत्तीसगढ़ धार्मिक छेत्र के प्रमुख व्यक्ति
Prominent people of Chhattisgarh Religious area

गुरु घासीदास बाबा Guru Ghasidas Baba

छत्तीसगढ़ धार्मिक छेत्र के प्रमुख व्यक्ति | Prominent people of Chhattisgarh religious area
  • छत्तीसगढ़ राज्य में सनातन धर्म के संस्थापक गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 में बलौदाबाजार जिले में गिरौधपुरी में हुआ था।
  • पिता महंगू दास माता अमरौतिनबाई मृत्यु 1836 में हुई।
  • इनके बचपन का नाम घसिया तथा पत्नी का नाम सुफरा था। 
  • इन्होंने 1820 में सनातन पंथ की स्थापना की थी। 
  • इन्हें ज्ञान की प्राप्ति छाता पहाड़ में और-धौरा वृक्ष के नीचे हुआ था। 
  • इन्होंने 7 उपदेश दिए। इनके शिष्य सतनामी कहलाये और इनकी पूजा स्थली जैतखंभ है। 
  • सत्य और सात्यिक आचरण के प्रतीक के रूप में जैतखंभ पर सफेद झण्डा फहराया जाता है।
  • इन्होंने अंतिम उपदेश जांजगीर-चाँम्पा जिले के दल्हापोंड़ी स्थान में दिया था।

संत गहिरा गुरु Saint Ghira Guru

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  • गहिरा गुरू जी का जन्म रायगढ़ जिले के लैलूंगा विकासखण्ड के ग्राम-गहिरा में एक आदिवासी कवंर परिवार में श्रावण अमावश्या सन् 1905 में हुआ था। 
  • परम् पूज्य गुरूजी 21 नवम्बर 1996 देवौत्थानी एकादशी के दिन अपनी भौतिक काया का त्याग कर 92 वर्ष के उम्र में बह्मलीन् हो गये दीन-दुखियों की सेवा ही उनका धर्म था । 
  • बाल्यकाल से ही गुरूजी अलौकिक शक्तियों की ओर आकर्शित रहे जिसके फलस्वरूप औपचारिक शिक्शा अक्शर ज्ञान तक ही सीमित रहे । 
  • गुरूजी की संकल्पशीलता सतत् साधना तथा निःस्वार्थ समर्पित सेवा भावना ने अविभाजित मध्य प्रदेश के रायगढ़/सरगुजा/बिलासपुर/कोरबा अविभाजित बिहार के रांची जिले के जनजातिय अंचलों में एक बड़ी सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति कर दिखायी।

  • जब उन्हें मालूम हुआ कि जनजातिय दुर्गम आन्तरिक क्शेत्रों में पशु और मानव मांस भक्शण/बलि की कुप्रथा प्रचलित है तो उन्होंने घोर पिछड़ेपन की प्रतीक इस कुप्रथा को मिटाने का संकल्प किया। इस दिशा में आपने अज्ञान के अंधेरे में भटकते आदिवासियों को शांति और सेवा का ब्रत ग्रहण करने के लिए प्रेरित कर उनमें सद्विचार सद्भावना एवं प्रेम की ज्योति जगायी। 
  • गुरूजी ने आदिवासियों के संस्कार सुधारने के दिशा में भी ब्यापक प्रयास किये हैं आप मदिरापान को आदिवासियों के पिछड़ेपन एवं शोशण का एक प्रमुख कारण मानते थे। 
  • वे अपने उपदेशों में वनवासी आदिवासियों को “सत्य शांति दया क्शमा“ धर्म का पालन करने की चार अच्छी बातें ग्रहण करने तथा चोरी-दारी (परस्त्रीगमन) हत्या और मिथ्याभाशण न करने इन चार बुरी बातों को त्यागने पर जोर देते थे । “सत्य-शांति-दया-क्शमा धारण करें । चेरी-दारी-हत्या-मिथ्या त्याग करें“।।
  • इसी उपदेश के फॅलस्वरूप अविभाजित मध्यप्रदेश के सरगुजा/रायगढ़/बिलासपुर/कोरबा बिहार के रांची जिले के लाखों लोगों के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आया। 
  • गुरूजी ने सन् 1943 में बनवासियों के योजनाबद्ध सर्वांगिण विकास हेतु “सनातन संत समाज“ नामक संस्था की स्थापना की। 
  •  शिक्षा और सुसंस्कारों की प्रचार के लिए सुदूर आदिवासी अंचलों में संस्कृत पाठशालायें आश्रम विद्यालय तथा संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की। 
  • परम् पूज्य गुरूजी एवं संस्था सनातन संत समाज गहिरा के सेवा कार्यों से प्रभावित होकर शासन द्वारा क्रमशः “राश्ट्रीय ईंदिरा गांधी समाज सेवा पुरस्कार“ “बिरसा मुण्डा आदिवासी सेवा पुरस्कार“ एवं “शहीद बीर नारायण सिंह पुरस्कार“ प्रदान किया गया। 
  • छत्तीसगढ़ शासन द्वारा परम् पूज्य गुरूजी की स्मृति में गहिरा गुरू पर्यावरण पुरस्कार स्थापित किया गया।

धनी धर्मदास साहेब Dhani DharmDas Saheb

धनी धर्मदास का जन्म संवत 1472 अर्थात 1416 ई. के कार्तिक मास के तीसवें दिन अर्थात पूर्णिमा को बांधवगढ़ के कसौंधन वैश्य परिवार में हुआ था।
छत्तीसगढ़ में धनी धर्मदास साहेब द्वारा स्थापित कबीरपंथ की वंश गद्दी में अब तक 14 गुरु हो चुके है तथा वर्तमान में 15 वें वंश आचार्य गद्दी पर विराजमान है जिनका ब्यौरा इस तरह है
(1) मुक्तामणि नाम ।
(2) सुदर्शन नाम।
(3) कुलपति नाम।
(4) प्रमोध गुरु बालापीर नाम।
(5) केवल नाम।
(6) अमोल नाम।
(7) सूर्त सनेही नाम।
(8) हक्क नाम।
(9) पाक नाम।
(10) प्रकट नाम ।
(11) धीरज नाम।
(12) उग्र नाम।
(13) दया नाम।
(14) गृन्धमुनि नाम।
(15) प्रकाश मुनि।
इनके पश्चात कबीरपंथ के 16 वें वंश गुरु उदित मुनि नाम साहेब का भी आविर्भाव हो चुका है ।

महाप्रभु वल्लभाचार्य वल्लभाचार्य Mahaprabhu Vallabhacharya

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  • प्रादुर्भाव ईः सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ।
  • वल्लभाचार्य भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। 
  •  उन्हें 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। 
  • श्री रुद्रसंप्रदाय के श्री विल्वमंगलाचार्य जी द्वारा इन्हें 'अष्टादशाक्षर गोपाल मन्त्र' की दीक्षा दी गई। त्रिदंड सन्न्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ से प्राप्त हुई। 
  • विवाह पंडित श्रीदेव भट्ट जी की कन्या महालक्ष्मी से हुआ, और यथासमय दो पुत्र हुए- श्री गोपीनाथ व विट्ठलनाथ।
  • अद्वैतवादअद्वैत वेदान्त की प्रतिक्रियास्वरूप ही वेदान्त के अन्य सम्प्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ। रामानुज, निम्बार्क, मध्व और वल्लभ ने ज्ञान के स्थान पर भक्ति को अधिक प्रश्रय देकर वेदान्त को जनसामान्य की पहुँच के योग्य बनाने का प्रयास किया। उपनिषद, 'गीता' और ब्रह्मसूत्र के विश्लेषण पर ही शंकर के अद्वैतवाद का भवन खड़ा हुआ था। इसी कारण अन्य आचार्यों ने भी प्रस्थानत्रयी के साथ साथ भागवत को भी अपने मत का आधार बनाया।
  • सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ब्रजाधिप:।..तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्ण: शरणं मम।

स्वामी आत्मानंद Swami Atmanand
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  • स्वामी आत्मानंद का जन्म रायपुर जिले के बरबंदा गांव में 6 अक्टूबर 1929 को हुआ. 
  • स्वामी आत्मानंद के पिता धनीराम वर्मा बरबंदा गांव के पास के स्कूल में शिक्षक थे। उनकी माता भाग्यवती देवी गृहणी थी. 
  • सन् 1957 में रामकृष्ण मिशन के महाध्यक्ष स्वामी शंकरानंद ने तुलेन्द्र की प्रतिभा, विलक्षणता, सेवा और समर्पण से प्रभावित होकर ब्रम्हचर्य में दीक्षित किया और उन्हें नया नाम दिया, स्वामी तेज चैतन्य. स्वामी तेज चैतन्य ने अपने नाम के ही अनुरूप अपनी प्रतिभा और ज्ञान के तेज से मिशन को आलोकित किया. 
  • अपने आप में निरंतर विकास और साधना सिद्धि के लिए वे हिमालय स्थित स्वर्गाश्रम में एक वर्ष तक कठिन साधना कर वापस रायपुर आए. स्वामी भास्करेश्वरानंद के सानिध्य में उन्होंने संस्कार की शिक्षा ग्रहण की, यहीं पर उन्हें स्वामी आत्मानंद का नाम मिला.
  • पिता धनीराम वर्मा ने शिक्षा क्षेत्र में उच्च प्रशिक्षण के लिए बुनियादी प्रशिक्षण केन्द्र वर्धा में प्रवेश ले लिया और परिवार सहित वर्धा आ गए. 
  • वर्धा आकर धनीराम महात्मा गांधी के सेवा ग्राम आश्रम में अक्सर आने लगे. बालक तुलेन्द्र भी पिता के साथ सेवा ग्राम जाने लगा.बचपन से तुलेन्द्र गीत और भजन कर्णप्रिय स्वर में गाते थे. जिसके कारण महात्मा गांधी उनसे स्नेह करते थे. गांधी जी उन्हें अपने साथ बैठाकर उनसे गीत सुनते थे. धीरे-धीरे तुलेन्द्र को महात्मा गांधी का विशेष स्नेह प्राप्त हुआ. गांधी जी जब तुलेन्द्र के साथ आश्रम में घूमते थे तब वे उनकी लाठी उठाकर आगे-आगे दौड़ते थे और गांधी जी पीछे-पीछे लम्बे-लम्बे डग भरते अपने चिर-परिचित अंदाज में चलते थे.
  • स्वामी आत्मानंद ने छत्तीसगढ़ में मानव सेवा एवं शिक्षा संस्कार का अलख जगायी. शहरी और आदिवासी क्षेत्र में बच्चों में तेजस्विता का संस्कार, युवकों में सेवाभाव तथा बुजुर्गों में आत्मिक संतोष का संचार किया.

महर्षि महेश योगी Maharishi Mahesh Yogi

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  • महर्षि महेश योगी(जन्म 12 जनवरी 1918 -निधन 5 फरवरी 2008 ) का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ था।
  • उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की उपाधि अर्जित की। 
  • उन्होने तेरह वर्ष तक ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की। 
  • महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी। 
  • हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद सन् 1955 में उन्होने टीएम तकनीक की शिक्षा देना आरम्भ की। 
  • सन् 1957 में उनने टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। 
  • महर्षि महेश योगी द्वारा चलाया गए आंदोलन ने उस समय जोर पकड़ा जब रॉक ग्रुप 'बीटल्स' ने 1968 में उनके आश्रम का दौरा किया। इसके बाद गुरुजी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन अर्थात भावातीत ध्यान पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ।
  • उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर आध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे।
  • अपनी विश्व यात्रा की शुरूआत 1959 में अमेरिका से करने वाले महर्षि योगी के दर्शन का मूल आधार था, ' जीवन परमआनंद से भरपूर है और मनुष्य का जन्म इसका आनंद उठाने के लिए हुआ है।
  • प्रत्येक व्यक्ति में ऊर्जा, ज्ञान और सामर्थ्य का अपार भंडार है तथा इसके सदुपयोग से वह जीवन को सुखद बना सकता है।' 
  • वर्ष 1990 में हॉलैंड के व्लोड्राप गाँव में ही अपनी सभी संस्थाओं का मुख्यालय बनाकर वह यहीं स्थायी रूप से बस गए और संगठन से जुड़ी गतिविधियों का संचालन किया। दुनिया भर में फैले लगभग 60 लाख अनुयाईयों के माध्यम से उनकी संस्थाओं ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और प्राकृतिक तरीके से बनाई गई कॉस्मेटिक हर्बल दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया।
  • मुद्रा 'राम' महर्षि योगी ने एक मुद्रा की स्थापना भी की थी। महर्षि महेश योगी की मुद्रा राम को नीदरलैंड में क़ानूनी मान्यता प्राप्त है। 
  • राम नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले एक, पाँच और दस के नोट हैं। इस मुद्रा को महर्षि की संस्था ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस ने अक्टूबर 2002 में जारी किया था। 
  • डच सेंट्रल बैंक के अनुसार राम का उपयोग क़ानून का उल्लंघन नहीं है। बैंक के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि इसके सीमित उपयोग की अनुमति ही दी गई है। अमरीकी राज्य आइवा के महर्षि वैदिक सिटी में भी राम का प्रचलन है। 
  • वैसे 35 अमरीकी राज्यों में राम पर आधारित बॉन्डस चलते हैं। नीदरलैंड की डच दुकानों में एक राम के बदले दस यूरो मिल सकते हैं। 
  • डच सेंट्रल बैंक के प्रवक्ता का कहना है कि इस वक्त कोई एक लाख राम नोट चल रहे हैं।


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