राज्यपाल GOVERNOR
राज्यपाल GOVERNOR
परिचय
राज्यपाल, राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं है। राष्ट्रपति के पास मात्र विवेकाधीन शक्ति ही है जिसके अलावा वह सदैव प्रभाव का ही प्रयोग करता है किंतु संविधान राज्यपाल को प्रभाव तथा शक्ति दोनों देता है। उसका पद जितना शोभात्मक है, उतना ही कार्यात्मक भी है।अनु 166(2) के अंर्तगत यदि कोई प्रशन उठता है कि राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन है या नहीं तो उसी का निर्णय अंतिम माना जाता है
अनु 166(3) राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उन नियमों के निर्माण हेतु कर सकता है जिनसे राज्यकार्यों को सुगमता पूर्वक संचालन हो साथ ही वह मंत्रियों में कार्य विभाजन भी कर सकता है
अनु 200 के अधीन राज्यपाल अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग राज्य विधायिका द्वारा पारित बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकने में कर सकता है
अनु 356 के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति को राज के प्रशासन को अधिग्रहित करने हेतु निमंत्रण दे सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकता हो
राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की होती है। केन्द्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं।
7 वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है।
भारत में राज्यपाल Governor in India
- जिस प्रकार केंद्र में राष्ट्र का प्रमुख राष्ट्रपति होता है उसी प्रकार राज्यों में राज्य का प्रमुख राज्यपाल होता है।
- उल्लेखनीय है कि राज्यपाल राज्य का औपचारिक प्रमुख होता है और राज्य की सभी कार्यवाहियाँ उसी के नाम पर की जाती हैं।
- प्रत्येक राज्य का राज्यपाल देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है एवं यह राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से कार्य करता है।
- सामान्यतः राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परंतु वह इस अवधि से पूर्व भी राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर सेवानिवृत्त हो सकता है।
- गौरतलब है कि राज्यपाल का कार्यालय पिछले पाँच दशकों से सबसे विवादास्पद रहा है। यह विवाद 1959 में राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक मतभेद के कारण केरल के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा केरल सरकार की बर्खास्तगी से शुरू हुआ था।
- इस विवाद ने 1967 में उत्तरी राज्यों में कई गैर-कांग्रेसी सरकारों के उभरने के बाद सबसे खराब रूप धारण कर लिया।
राज्यपाल के पद का महत्त्व Importance of Governor's post
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यपाल का पद केंद्र और राज्यों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में है जो देश के संघीय ढाँचे को सुव्यवस्थित रूप से चलाने में मदद करता है।
- गौरतलब है कि लोकतंत्र के सुचारु संचालन में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
- चूँकि हमारा देश राज्यों में विभाजित है इसलिये कई जानकार देश के राष्ट्रीय हित, अखंडता और आंतरिक सुरक्षा के लिये केंद्रीय पर्यवेक्षण की वकालत करते हैं जिसके लिये राज्यपाल की आवश्यकता होती है।
राज्यपाल की योग्यता ELIGIBILITY/QUALIFICATIONS Of GOVERNOR
अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है–- 1. वह भारत का नागरिक हो,
- 2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
- 3. वह राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो,
- 4. वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
- 5. वह पागल या दिवालिया घोषित न किया जा चुका हो।
- 6. जो संसद या विधानमंडल का सदस्य नहीं है और यदि ऐसा व्यक्ति हो तो राज्यपाल के पदग्रहण के बाद उसकी सदस्यता का अंत हो जायेगा. अपनी नियुक्ति के बाद वह किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं रह सकता.
राज्यपाल की विशेष विवेकाधीन शक्ति Special discretionary power of governor
- राज्यपाल राष्ट्रपति को इस बात की सूचना अपने विवेक से दे सकता है कि राज्यपाल में संवैधानिक तन्त्र विफल हो गया है.
- विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राज्यपाल अपने विवेक से रोके रख सकता है.
- यदि विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं है तो राज्यपाल अपने विवेक से किसी को भी मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है.
- असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम के राज्यपाल द्वारा खनिज उत्खनन की रॉयल्टी के रूप में जनजातीय जिला परिषद् को देय राशि का निर्धारण करता है.
- राज्यपाल मुख्यमंत्री से राज्य के प्रशासनिक और विधायी विषयों के बारे में सूचना प्राप्त कर सकता है.
- राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह अपने विवेक से विधान सभा द्वारा पारित साधारण विधेयक को हस्ताक्षरित करने से मना कर सकता है.
- इसके अतिरिक्त असम, नागालैंड, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा कर्नाटक के राज्यपाल को स्थानीय विकास, जनकल्याण तथा कानून व्यवस्था के संदर्भ में कुछ विशेष दायित्व सौंपे गये हैं जिनका निर्वहन वह स्वविवेक से करता है.
राज्यपाल की भूमिका Role of governor
- प्रत्येक राज्य का राज्यपाल वहाँ लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 तक राज्यपाल की भूमिका का वर्णन किया गया है।
- राज्य के राज्यपाल की भूमिका कमोबेश देश के राष्ट्रपति के सामान ही होती है। राज्यपाल सामान्यतः राज्यों के लिये राष्ट्रपति जैसी भूमिका का निर्वाह करता है।
- राज्यपाल के कार्यों को मुख्यतः 4 भागों (1) कार्यकारी (2) विधायी (3) वित्तीय (4) न्यायिक में विभाजित किया गया है।
1 कार्यकारी
- राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राज्यपाल को कई महत्त्वपूर्ण कार्य करने होते हैं, इसमें बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करना तथा राज्य मंत्रिमंडल के गठन में मुख्यमंत्री की सहायता करना आदि शामिल हैं। साथ ही राज्य के महाधिवक्ता तथा राज्य लोक आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का कार्य भी राज्यपाल द्वारा ही किया जाता है।
2 विधायी
- राज्यपाल के पास राज्य की विधानसभा की बैठक को किसी भी आपात स्थिति में बुलाने और किसी भी समय स्थगित करने का अधिकार होता है। साथ ही उसे दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का भी अधिकार है। उसे राज्य विधानसभा में पारित किये जाने वाले किसी भी विधेयक को रद्द करने, समीक्षा के लिये वापस भेजने और राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार है। इसका अर्थ है कि राज्य विधानसभा में कोई भी विधेयक राज्यपाल की अनुमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता। राज्य में आपातकाल के दौरान किसी भी प्रकार का अध्यादेश जारी करने का कार्य भी राज्यपाल का होता है।
3 वित्तीय
- राज्यपाल का कार्य यह सुनिश्चित करना भी होता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य-बजट) को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाए। साथ ही किसी भी धन विधेयक को विधानसभा में उसकी अनुमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है। पंचायतों एवं नगरपालिका की वित्तीय स्थिति की हर पाँच वर्षों बाद समीक्षा करने के लिये राज्यपाल राज्य वित्त आयोग का भी गठन करता है।
4 न्यायिक
- राज्यपाल के न्यायिक कार्यों में राज्य के उच्च न्यायालय के साथ विचार कर ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति संबंधी निर्णय लेना शामिल है। वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति भी करता है।
राज्यपाल की नियुक्ति APPOINTMENT Of Governor
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी, किन्तु वास्तव में राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफ़ारिश पर की जाती है। राज्यपाल की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्न दो प्रकार की प्रथाएँ बन गयी थीं-1. किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्त किया जाएगा, जिसका वह निवासी है।
2. राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाएगा।
यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनायी गयी, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब दूसरी प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी।
अनुच्छेद 158
संविधान के अनुच्छेद 158 के तहत राज्यपाल नियुक्ति हेतु कुछ शर्तों का उल्लेख है, यह शर्ते हैं –- राज्यपाल संसद अथवा किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता. यदि कोई व्यक्ति जो संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य है, राज्यपाल पद पर नियुक्त होता है तो वह राज्यपाल का पद ग्रहण करने की तिथि से संसद अथवा राज्य विधानमंडल में उसका पद रिक्त माना जाएगा.
- राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा.
- राज्यपाल को निःशुल्क आवास, वेतन, भत्ते एवं उपलब्धियाँ तथा विशेषाधिकार प्राप्त होंगे जो संसद विधि द्वारा निर्धारित करे. वर्तमान में राज्यपाल का वेतन 3 लाख 50 हजार रूपये है.
राज्यपाल के कार्य Work Of Governor
- वह विधानमंडल के किसी भी सदन को जब चाहे तब सत्र बुला सकता है, सत्रावसान कर सकता है और विधान सभा को, यदि वह उचित समझे, तो विघटित कर सकता है.
- वह विधान परिषद् के 1/6 सदस्यों को मनोनीत भी करता है. वह दोनों सदनों को संबोधित कर सकता है या उनमें विधेयक-विषयक कोई सन्देश भेज सकता है, जिसपर सदन शीघ्र ही विचार करेगा.
- विधानमंडल के प्रत्येक सदस्य को राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेना पड़ता है.
- वह प्रत्येक विक्तीय वर्ष के आरम्भ में उस वर्ष का वार्षिक वित्त-वितरण विधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करता है.
- विधान सभा में उसकी अनुमति के बिना किसी अनुदान की माँग नहीं की जा सकती. जब कोई विधेयक पारित होता है, तब वह उसकी स्वीकृति के लिए भेजा जाता है. राज्यपाल उसपर अपनी स्वीकृति दे सकता है, उसे अस्वीकृत भी कर सकता है या राष्ट्रपति के विचारार्थ रख सकता है.
- वह धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक को पुनः विचार करने के लिए विधानमंडल के पास भी भेज सकता है. लेकिन, यदि वह विधेयक पुनः संशोधनसहित या बिना किसी संशोधन के विधानमंडल द्वारा पारित हो जाए, तो उसे अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है.
राज्यपाल की कार्य पदावधि Governor's term of office
संविधान के अनुच्छेद 156 के अनुसार –- राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है.
- राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना त्यागपत्र दे सकता है.
- राज्यपाल अपने पदग्रहण की अवधि से पाँच वर्षों तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले. सामान्यतः प्रत्येक राज्य हेतु एक राज्यपाल होता है.
- किन्तु एक ही राज्यपाल दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है.
- राज्यपाल पद ग्रहण करने से पूर्व सम्बंधित राज्य के उच्च न्यायालय मुख्य न्यायाधीश अथवा वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष अपने पद की शपथ लेता है.
राष्ट्रपति से अलग कैसे?
राज्यपाल की स्थिति राष्ट्रपति से दो मामलों में भिन्न है –
- संविधान कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेक के आधार पर कार्य करने की शक्ति देता है. जबकि राष्ट्रपति को ऐसी शक्ति नहीं है.
- 42वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति पर मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी बना दी गई है. जबकि राज्यपाल के सम्बन्ध में ऐसा नहीं है.
शक्तियां The powers
- राष्ट्रपति की भाँति राज्यपाल को भी कुछ कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियाँ मिली हुई हैं.
- उसके पास कुछ विवेकाधीन अथवा आपातकालीन शक्तियां भी होती हैं.
- किन्तु राष्ट्रपति की भाँति राज्यपाल के पास कोई कूटनीतिक अथवा सैन्य शक्ति नहीं होती है.
राज्यपाल से सम्बन्धित सरकारिया आयोग की सिफारिशें
भारतीय राजनीति में राज्यपाल का पद तथा भूमिका दीर्घ काल से विवाद का कारण रही है जिसके चलते काफी विवाद हुए हैं। सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस तरह की सिफारिश दी थी- एक राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह के बाद ही राष्ट्रपति करे
- वह जीवन के किसी क्षेत्र का महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हो
- वह राज्य के बाहर का रहने वाला हो
- वह राजनैतिक रूप से कम से कम पिछले 5 वर्शो से राष्ट्रीय रूप से सक्रिय ना रहा हो तथा नियुक्ति वाले राज्य में कभी भी सक्रिय ना रहा हो
- उसे सामान्यत अपने पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने दिया जाये ताकि वह निष्पक्ष रूप से काम कर सके
- केन्द्र पर सत्तारूढ राजनैतिक गठबन्धन का सद्स्य ऐसे राज्य का राज्यपाल नहीं बनाया जाये जो विपक्ष द्वारा शासित हो
- राज्यपाल द्वारा पाक्षिक रिपोर्ट भेजने की प्रथा जारी रहनी चाहिए
- यदि राज्यपाल राष्ट्रपति को अनु 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा करे तो उसे उन कारणॉ, स्थितियों का वर्णन रिकार्ड में रखना चाहिए जिनके आधार पे वह इस निष्क़र्ष पे पहुँचा हो
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