छत्तीसगढ़ लोक कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति, छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार In Hindi

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छत्तीसगढ़ लोक कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति, छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार In Hindi

छत्तीसगढ़ लोक कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति, छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार In Hindi

छत्तीसगढ़ लोक कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति
People of Chhattisgarh Folk Art and Literature Sector

छत्तीसगढ़ में सांस्कतिक प्रधान राज्य है यहां ऐसे बहुत से लोक कलाकार हुए है जिसने राज्य ही नहीं अपतु पुरे राष्ट्र को गौरवांन्वित किया है छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक कलाकरो एवं साहित्यकारों की जानकारी निचे दिए गए है।

छत्तीसगढ़ लोक कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति

तीजन बाई Teejan Bai

  • कर्म-क्षेत्र पण्डवानी गायिका
  • जन्म 24 अप्रैल, 1956 भिलाई ज़िले के गिनियार गाँव में हुआ था।
  • तीजनबाई के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती 
  • तीजनबाई का विवाह 12 साल की उम्र में हो गया था। उसके बाद तीजनबाई ने तीन विवाह और किए, अब वह अपने चौथे पति तुक्का राम के साथ जीवन व्यतीत कर रही हैं।
  • पुरस्कार-उपाधि 1988 पद्मश्री, 1995 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2003 पद्म भूषण 2003 बिलासपुर विश्वविद्यालय के द्वारा डी. लिट. की मानद उपाधि
  • प्रसिद्धि तीजनबाई छत्तीसगढ़ राज्य की पहली महिला कलाकार हैं जो पण्डवानी की कापालिक शैली की गायिका है।
  • तीजनबाई ने अपना जीवन का पहला कार्यक्रम सिर्फ 13 साल की उम्र में दुर्ग ज़िले के चंदखुरी गाँव में किया था।
  • तीजनबाई छत्तीसगढ़ राज्य की पहली महिला कलाकार हैं जो पण्डवानी की कापालिक शैली की गायिका है। 
  • तीजनबाई ने अपनी कला का प्रदर्शन अपने देश में ही बल्कि विदेश में भी किया है, जिसके के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण और पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
  • विदेश यात्राएँ सन्‌ 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मारिशस की यात्रा की और वहाँ पर प्रस्तुतियाँ दीं।

पदुमलाल पुन्नलाल बख्सी Padumlal Punnalal Bakhsi 

  • इनका जन्म 1894 में हुआ था
  • इनका प्रारंभिक शिक्षा खैरागढ़़ में हुई इसके पश्चात उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय सेेे स्नातक पास किया और खैरागढ़ में अध्यापक हो गए
  • आपको देश की सबसे सम्मानीय पत्रिका सरस्वती का संपादक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। 
  • गुरु रविंद्र नाथ टैगोर से प्रभावित होकर बख्शी जी ने साहित्य के सभी विधाओं में लिखा आपको डी. लिट. और विद्या और वाचस्पति जैसे उच्चतम उपाधियां दी गई 
  • सन 1971 में रायपुुर में आपका निधन हो गया।

दाऊ दुलार सिंह मंदराजी Dau Dular Singh Mandraji

  • दाऊ दुलार सिंह मंदराजी का जन्म 1 अप्रैल 1910 को रवेली ग्राम के सम्पन्न जमींदार परिवार में हुआ था ।बचपन से गीत-नृत्य के प्रति खास लगाव था।
  • उन दिनों गांव-गांव में खड़े साज का बोल-बाला था । खड़े साज या मशाल लेकर की जाने वाली मसलहा नाचा प्रस्तुतियों का यह संक्रमण काल था । यह प्रचलित स्वरुप विकसित होकर गम्मत-नाचा का प्रभावी रुप ग्रहण कर मंच पर स्थान बनाता गया । 
  • आपने नाचा के मंचीय विकास की यात्रा में भरपूर योगदान दिया ।
  • आपने इस विधा को विकृति से बचाते हुए परिष्कृत करने का बीड़ा उठाकर रवेली गांव के मंचीय प्रदर्शन से प्रयास आरंभ किया । 
  • सक्षम कलाकारों से सुसज्जित उनकी टोली धीरे-धीरे लोकप्रियता पाने लगी । छत्तीसगढ़ी नाचा की लोकयात्रा रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, जगदलपुर, अंबिकापुर, रायगढ़ से टाटानगर तक कई छोटी-बड़ी जगहों में अपना परचम फैलाते बढ़ने लगी । 
  • रायपुर के रजबंधा मैदान में रवेली दल की नाचा प्रस्तुति को आज भी याद किया जाता है ।
  • नाचा के माध्यम से अभिनय के क्षेत्र में मदन निषाद, लालू, भुलवाराम, फिदाबाई मरकाम, जयंती, नारद, सुकालू और फागूदास जैसे दिग्गजों को सामने लाने का श्रेय आपको है । नाचा के माध्यम से छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को जीवन्त रखने और उसके समुचित संरक्षण के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर दिया । जीवन का आखिरी पहर गुमनामी और गरीबी में गुजारा लेकिन आपने व्यक्तिगत लाभ-प्रशंसा की चाहत को दरकिनार कर केवल नाचा की समृद्धि को जीवन की सार्थकता माना । 1984 को उनका निधन हो गया ।
  • प्रदर्शनकारी लोक विधा-नाचा को जीवंत रखने, जन सामान्य में उसकी पुनर्प्रतिष्ठा और लोक कलाकारों को प्रश्रय देने वाला यह व्यक्तित्व नई पीढ़ी के लिए प्रेरक है । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में लोक कला/शिल्प के लिए दाऊ मंदराजी सम्मान स्थापित किया है ।

दाऊ रामचंद्र देशमुख Dau ramchandra des mukh

  • छत्तासगढी लोककला के उद्धारक दाऊ रामचंद्र देशमुख का जन्म दुर्ग के बघेरा नामक गांव में हुआ ।
  • 1951 में देहाती कला मंच का गठन किया तथा 1971 में चंदैनी गोदा का गठन किया था।
  • दाऊ रामचन्द्र देशमुख छत्तीसगढ़ी कला, संस्कृति के ओर सम्पूर्ण रुप से समर्पित है। 
  • उन्होंने चंदैनी गोंदा शुरु किये और गांव गांव में गये ताकि कलाकार कवि उससे जोड़े। चंदैनी गोंदा शुरु से ही बहुत लोकप्रिय रहे। कहा जाता है कि चंदैनी गोंदा है सांस्कृतिक जागरन के प्रतीक। इसी मंच के कारण कितने प्रतिभाशाली व्यक्ति आगे आ पाये जैसे लक्ष्मण मस्तूरिया, खुमान साव, केदार यादव, साधना यादव, भैयालाल हेड़ाऊ और कितने कलाकार, चंदैनी गोंदा जैसे प्रस्तुति बहुत ही बिरल है। 
  • छत्तीसगढ़ के किसान के पीरा, गांव के दुख दर्द, गीत-पूरे छत्तीसगढ़ की झलक इस प्रस्तुति में दिखाते है। 
  • दाऊ रामचन्द्र देशमुख डाक्टर खुबचंद बाघेल के प्रेरणा से छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक जागरण के लिये बहुत काम कर गये है। 
  • देहाती कला विकास मंडल का स्थापना की सन 51 में और उसके माध्यम से कला को आगे बढ़ाये।

विरजू महाराज Virju Maharaj

  • विरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को हुआ था
  • आपका बचपन रायपुर और पटियाला में व्यतीत हुआ इसके बाद रायगढ़ जिले में रहे 22 वर्ष की अल्पायु में आपको केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है
  • विरजू महाराज को मध्य प्रदेश सरकार ने शास्त्रीय नृत्य के लिए वर्ष 1986 का कालिदास सम्मान प्रदान किया गया। 
  • 24 फरवरी 2000 को उन्हें प्रतिष्ठित संगम कला पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।

झाडूराम देवांगन Jhaduram Devangan

  • पण्डवानी गुरू, पण्डवानी को राष्ट्रीय पहचान दी। तीजनबाई पूनाराम निषाद इनके शिष्य है।

दाऊ महासिंह चंद्राकर Dau mahasingh Chandrakar

  • दाऊ महासिंह चंद्राकर इन्होंने सोनहा बिहान तथा लोरिक चंदा को ‘‘खड़े साज शैली‘‘ में प्रस्तुत किया था। लोकनाट्य, लोकनृत्य, लो कगीत आदि सभी सांस्कृतिक विधाओं में इन्होंने अमिट छाप  छोड़ीं।
  • दाऊ महासिंह चन्द्राकर बचपन में एक राऊत कलाकार के बांस गीत से इतना प्रभावित हुये थे कि लोककला के लिए पूरी जिन्दगी काम करते रहे।

सुरुजबाई खाण्डे Suruj Bai Khande

  • भरथरी, छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोकगीत कला, में सुरुजबाई खाण्डे का नाम बहुत ही महत्व रखता है। 

गोविंद निर्मलकर Govind Nirmalkar

  • गोविंद निर्मलकर को मदन निषाद से प्रेरणा मिली थी। 
  • मोहारा गावं में पैदा हुये थे गोविन्द जी और बचपन से मोहारा के प्रसिद्ध नाचा कलाकार मदन निषाद के प्रोत्साहन से वे बी नाचा के दुनिया में आये। 
  • शुरु में वे मंजीरा, ढोलक बजाते थे। बाद में रवेली और रिगंनी नाच पार्टी के मुख्य कलाकार बने।
  • हबीब तनबीर के साथ 1973 में जुड़े और मिट्टी की गाड़ी, आगरा बाजार, गांव के नाव ससुरार, उत्तम राम चरित्र में काम करके कितनों को हँसाया, रुलाया। 
  • उन्हें तुलसी सम्मान से सम्मानित किया गया है।

किस्मत बाई देवार Kismat Bai Dewar

  • किस्मत बाई देवार बचपन से संगीत के साथ जुड़े हुये है। 
  • देवार कलाकारों को पहले जमाने में राजदरबार में राजकलाकारों की पदवी मिलते थे, देवार महिला कलाकारों में किस्मत बाई, बरतरीन बाई, फिदाबाई बासंती और पद्मा देवार प्रसिद्ध है। 
  • बरतीन बाई से उन्हें प्रशिक्षण मिली। आदर्श देवार पार्टी के नाम से एक मंडली बनाकर कार्यक्रम देती रही। 
  • हारमोनियम में मोहन, मांदर में गणेशराम मरकाम, ढोलक में चन्द्रभान तेलासी। 
  • रामचन्द्र देशमुख के चंदैनी गोंदा में किस्मत बाई अपनी प्रतिभा से जगह बनाई थी। 
  • हबीब तनबीर के मिट्टी के गाड़ी, चरनदास चोर, मोर नाव दमाद गावं के नाव ससुराल में किस्मत बाई थी।

खुमान यादव Khuman Yadav

  • खुमान यादव छत्तीसगढ़ी लोकसांस्कृतिक पार्टी 'मांग के सिन्दूर' के संचालक और मुख्य कलाकार।
  •  बचपन से डूंडेरा गांव के खुमान यादव सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेते रहे। 
  • गांव के रामायण पाठ और खंझेरी भजन उनके जीवन का अंश रहे। 
  • घर में उन्हें हमेशा प्रोत्साहन किया गया था। पिता बुधाराम यादव, दादा प्रेमनाथ यादव और बड़े पिताजी उधोराम यादव के प्रेरणा से कलाकार बने। 
  • वे मानते है कि अगर भाई भतीजा, अर्थात अगली पीड़ि, छत्तीसगढ़ी गीत संगीत के क्षेत्र में नहीं आये, तो लोककला का विकास होना सम्भव नहीं है।

ममता चन्द्राकर Mamta Chandrakar

  • ममता चन्द्राकर महासिंह चन्द्राकर के बेटी होने के नाते घर में ही ऐसा माहौल में पलि, बड़ी हुई कि गीत संगीत उनके रग रग में बस गई। 
  • आज छत्तीसगढ़ में ममता चन्द्राकर रेडियो, दूरदर्शन और कैसेट के माध्यम से संगीत जगत में अपना स्थान बना चुकी है। 
  • शास्रीय संगीत के गुरु डॉ. अमरेश चन्द्र चौबे है और लोकगीत क्षेत्र में है केदार यादव।
  • खैरागढ़ संगीत विश्वविधालय कि कुलपति नियुक्त की गई है 

पद्मलोचन जयसवाल Padmalochan Jaiswal

  • पद्मलोचन जयसवाल छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंडल में भोजली के संचालक रहे है। इसी मंडल के माध्यम से न जाने कितने कलाकार सामने आये जैसे रेखा जलक्षत्री, सफरी मरकाम, भगत साहू, क्षमानिधी मिश्रा, लच्छी राम सिन्हा, कृष्ण कुमार सेन। 
  • पद्मलोचन जयसवाल बचपन से ही बड़े माहिर कलाकार रहे है और 14 नवम्बर 1969 में, जब वे हाईस्कूल में थे, तब उन्हें नेहरु बाल महोत्सव में उपराष्ट्रपति से पुरस्कार मिला था। 
  • " भोजली छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक पार्टी" बनाकर दूर दूर कारिग्रम देते रहे।

राकेश तिवारी Rakesh Tiwari

  • राकेश तिवारी तीनों क्षेत्रों में निपुण है छत्तीसगढ़ी गायन, अभिनय और संगीत में, कविताओं का संग्रह - " छत्तीसगढ़ के माटी चंदन" के सम्पादक रहे है। 
  • लोक संगीत की ओर उन्हें उनके दादा लक्ष्मण तिवारी ले गये। 
  • उनके साथ बचपन में जसगीत फाग मंगली में जाया करते थे राकेश तिवारी। 
  • उनकी कई गीत, वीडियो, टेलीफिल्म आकाशवाणी, दूरदर्शन में आते रहते हैं। कई आडियो कैसेट निकले है।

दीपक चन्द्रांकर Deepak Chandrankar

  • दीपक चन्द्रांकर बुहत अच्छे कलकार है। वे सोनहा बिहान में कलाकार के रुप में कम किये है। 
  • मदन निषाद जैसे नाचा कलाकार के साथ सहायक कलाकार के रुप में लोकाभिनय की है। 
  • उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य लोरिक चंदा, हरेली, घर कहा है, दसमत कैना, गम्मतिहा, रथयात्रा में मुख्य भूमिका अदा करने के साथ-साथ निर्देशन भी दी है। 
  • अपने गांव अर्जुन्दा में छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक मंडली 'लोकरंग' के स्थापना करके उसके माध्यम से बहुत काम कर रहे है। 
  • उन्हें लोककला महोत्सव (भिलाई) में पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 
  • 'रुमझुम चिरइया' और 'तेल हरदी' ये छत्तीसगढ़ी गीत के कैसेट निकाले है जिसमें है छत्तीसगढ़ के महिमा गीत, होरी, सुवा, ददरिया, सोहर, सवनाही, श्रमगीत, नचौड़ी गीत।

रजनी रजक Rajni Rajak

  • रजनी रजक को सर्वश्रेष्ठ गायिका और उद्घोषक के रुप में कई संस्था ने सम्मानित किया। 
  • उनके गीत जैसे 'ए चैती जाबो उतई के बजार' और 'पान खाइ लेबे मोर राजा' बहुत लोकप्रिय है।
  • अपने पिता जी.पी. रजक को प्रेरणा स्रोत और गुरु मानते है। 
  • जी.पी. रजक छत्तीसगढ़ी के हास्य कलाकार, गीतकार वादक है तथा तुलसी चौरा (लोककला मंच) के संचालक है। 
  • रजनी रजक के गीत के अनेक कैसेट है। वे छत्तीगढ़ी कवि दानेश्वर शर्मा और कुलेश्वर ताम्रकर को अपना आदर्श मानती है।

गणेश यादव Ganesh Yadav

  • गणेश यादव जिन्हें गन्नू यादव के नाम से जानते है लोग, बहुत अच्छे कलाकार, गायक है। 
  • वे दलार सिंह मंदराजी के रवेली साज में काम की है। 
  • हबीब तनबीर के साथ एवं मलय चक्रवर्ती के साथ काम की है। 
  • गन्नू यादव अच्छे तबला वादक होने के साथ-साथ कम्पो भी है। 
  • उनके पिता झुमुकलाल डिहारी भी गीत संगीत में माहिर थे।

फिदाबाई मरकाम Fidabai Mercam

  • फिदाबाई मरकाम नाचा के बहुत बड़ी कलाकार है। बहुत अच्छी गायिका और नर्तकी है फिदाबाई। 
  • देवार होने के नाते कलाकारी तो उनके खून में थी। फिदाबाई अनेक जगहों में अपनी कारिग्रम दी है। 
  • कई बार विदेशों में अपना कार्यक्रम लेकर गई है। जैसे फ्रांस, जर्मनी, सोवियत रुस, इंग्लैंड, यूगोस्लाविया, स्काटलैण्ड, डेनमार्क।
  • दाऊ मंदरा जी की खेली नाचा पार्टी  से इन्होंने कैरियर शुरू किया। 
  • मध्यप्रदेश शासन द्वारा तुलसी  सम्मान से इन्हें सम्मानित किया गया।
  • नाचा से संबंधित पहली महिला कलाकार हैं।

शिवकुमार तिवारी Shivkumar Tiwari

  • शिवकुमार तिवारी के लगभग पचास कैसेट निकल चुके है। 
  • उनके संगीत के गुरु उनके दादा आशाराम तिवारी और मंच के गुरु विजयसिंह रहे है। 
  • उनके मंडली 'सुर सुधा' के माध्यम से कारिग्रम देते रहते है।

देवदास बंजारे Devdas Banjare

  • देवदास बंजारे छत्तीसगढ़ के पंथी नर्तक है। 
  • देश विदेश में पंथी नृत्य को स्थापित इन्होंने ही किया। 
  • जब स्कूल में पढ़ते थे, तब कबड्डी के नामी खिलाड़ी थे। 
  • पंथी नाच से इन्हें इतना प्रोत्साहन मिला कि वे लोकनृत्य के क्षेत्र में आये। 
  • हबीब तनवीर के नया थियेटर में उनका चयन होने बाद कई बार विदेशो की यात्रा करके वहाँ पंथी  प्रस्तुत की। 
  • उन्हें 1972 में मुख्यमंत्री से स्वर्णपदक एवं 1975 में राष्ट्रपति से स्वर्णपदक मिली। उन्हें और भी कई बार सम्मानित किया गया है।

बरसाती भइया Barsati Bhaiya 

  • बरसाती भइया उनका नाम है केसरी प्रसाद बाजपेयी। 
  • आकाशवाणी के छत्तीसगढ़ी उदधोषक बहुत ही कम है, ऐसा लोगों का मानना है।
  • न्होंने सन् 1950 में आकाशवाणी नागपुर में उदघोषक और आलेख लेखक के रुप में काम शुरु की। 
  • छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाने का एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्र के लोक कलाकारों को आगे लाने का श्रेय बरसाती भइया को जाता है। 
  • सन् 1964 से आकाशवाणी रायपुर में छत्तीसगढ़ी प्रसारण के मुख्य दायित्व उन्होंने सम्भाला। 
  • बहुत अच्छे कलाकार है बरसाती भइया। उन्होंने सत्यजीत रे के निर्देशित सद्गति में भी अभिनय की है।


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