मानव श्वसन तंत्र, मानव श्वसन तंत्र सामान्य ज्ञान, मानव श्वसन तंत्र की क्रियाविधि, मानव श्वसन तंत्र कैसे कार्य करता है?, मनुष्य श्वसन तंत्र की संरचना

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मानव श्वसन तंत्र, मानव श्वसन तंत्र सामान्य ज्ञान, मानव श्वसन तंत्र की क्रियाविधि, मानव श्वसन तंत्र कैसे कार्य करता है?, मनुष्य श्वसन तंत्र की संरचना

मानव श्वसन तंत्र Human Respiratory System

मानव श्वसन तंत्र
Human Respiratory System


श्वसन तंत्र Respiratory System

  • मानव श्वसन में वायु फेफड़ों तक एवं फेफड़ों से बाहर जिस मार्ग से होकर गुजरती हैं उस मार्ग में उपस्थित सभी तंत्रों को मिलाकर ही श्वसन तंत्र कहाँ जाता हैं।
  • वयस्कों में श्वसन दर 18-20 और बच्चों में 44 होती है।
  • प्रत्येक जीव को जीवित रहने हेतु ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। क्योंकि ऑक्सीजन ही कार्बनिक भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण या विघटन करके ऊर्जा प्रदान करता है। 
  • भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण की यही प्रक्रिया ‘श्वसन’ (respiration) कहलाती है। चूंकि इस प्रकार की श्वसन क्रिया फुस्फुसों (Lungs) में ही सम्पन्न होती है। इसलिए इसे फुस्फुस श्वसन (Pulmonary Respiration) भी कहते हैं। चूंकि इसमें ऑक्सीजन का रुधिर में मिलना तथा CO2 का शरीर से बाहर निकलना सम्मिलित होता है, अतः इसे गैसीय विनिमय (Gaseous exchange) भी कहते हैं।

मानव श्वसन तंत्र की संरचना Human Respiratory System Structure

  • मनुष्य का श्वसन तंत्र की संरचना कई अंगों से मिलकर बना होता है। 
  • इस तंत्र के अंतर्गत वे सभी अंग आते हैं जिनसे होकर वायु का आदान-प्रदान होता है। 
  • इन अंगों में सबसे महत्वपूर्ण अंग फेफड़ा ( फुफ्फुसीय श्वसन ) (Pulmonary Respiration) होता है। 
  • जिस मार्ग से बाहर की वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है तथा फेफड़ों से कार्बनडाईआक्साइड बाहर निकलती है उसे श्वसन मार्ग कहते हैं।
  • मनुष्यों में बाहरी वायु तथा फेफड़ों के बीच वायु के आवागमन हेतु कई अंग होते हैं। ये अंग श्वसन अंग कहलाते हैं। ये अंग परस्पर मिलकर श्वसन तंत्र का निर्माण करते हैं।
  • श्वसन तंत्र की संरचना मनुष्यों और जंतुओं में भिन्न होती है मानव में फेफड़े श्वसन तंत्र का प्रमुख भाग है खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से कोशिकाओं को ऊर्जा प्राप्त होती है श्वसन एक अपचयी और अनैच्छिक (involuntary) क्रिया है।

श्वसन तंत्र को चार भागों में बांटा गया हैं

  1. बाह्य श्वसन तंत्र External respiratory system 
  2. वायु परिवहन / संवेदन श्वसन तंत्र Air transport / sensing respiratory system
  3. आन्तरिक श्वशन तंत्र Internal breathing system
  4. कोशिकीय श्वशन तंत्र Cellular respiratory system

1. बाह्य श्वसन तंत्र External Respiratory System

  • बाह्य श्वसन External respiration प्राणी और वातावरण के बीच श्वसन गैसों (O2 एवं CO2) के आदान-प्रदान अर्थात् ऑक्सीजन का शरीर में आना और कार्बन डाइऑक्साइड का शरीर से बाहर जाना बाह्य श्वसन कहलाता है 
  • चूंकि इस प्रकार की श्वसन क्रिया फुफ्फुसों (Lungs) में ही सम्पन्न होती है। इसलिए इसे फुफ्फुस श्वसन (Pulmonary respiration) भी कहते हैं। 
  • चूंकि इसमें ऑक्सीजन का रुधिर में मिलना तथा CO2 का शरीर से बाहर निकलना सम्मिलित होता है, अतः इसे गैसीय विनिमय (Gaseous exchange) भी कहते हैं।

बाह्य श्वसन तंत्र के 6 प्रकार होते हैं।

  • 1.1 नासमार्ग Nasal passages
  • 1.2 ग्रसनी Pharynx
  • 1.3 स्वरयंत्र Larynx
  • 1.4 श्वासनली Trachea
  • 1.5 फेफड़ा Lung
  • 1.6 डायफ्राम Diaphragm

1.1 नासमार्ग Nasal passages
नासमार्ग Nasal passages

  • यह श्वसन तंत्र का मुख्य भाग होता हैं जोकि म्यूकस कला का निर्माण करता हैं प्रतिदिन औसतन म्यूकस कला का निर्माण होता हैं।
  • इसका मुख्य कार्य वायु में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं, धूल के कण, वायु प्रदूषण तत्व आदि को अंदर जाने से रोकती हैं और यह अंदर जाने वाली वायु को शरीर के तापानुसार नम बनाती हैं नासामार्ग का मुख्य कार्य सूंघना हैं।

नासमार्ग Nasal passages1.2 ग्रसनी Pharynx

  • ग्रसनी नासामार्ग का पिछला भाग होता हैं यही पर स्वतंत्रिकाए आंशिक रूप से होती हैं। नासिका गुहा आगे चलकर मुख में खुलती है। यह स्थान मुखीय गुहा अथवा ग्रसनी कहलाता है। 
  • ग्रसनी कीप की समान आकृति वाली अर्थात आगे से चौड़ी एवं पीछे से पतली रचना होता है।
  • ग्रसनी पाचन तंत्र के साथ-साथ श्वसन तंत्र का भी हिस्सा होती है।
  • ग्रसनी के इसी भाग से श्वसनीय एवं पाचन तंत्र अलग-अलग हो जाते हैं।
यह तीन भागों में बटी होती है
  • a. नासाग्रसनी (Nossopharynx)
  • b. मुखग्रसनी (Oropharynx)
  • c. स्वरयंत्र ग्रसनी (Larynigospharynx)

a. नासाग्रसनी Nossopharynx

  • नासाग्रसनी Nossopharynx नासिका में पीछे और कोमल तालु के आगे वाला भाग है। 
  • इसमें नासिका से आकर नासाछिद्र खुलते हैं। इसी भाग में एक जोड़ी श्रावणीय नलिकाएं कर्णगुहा से आकर खुलती हैं इन नलिकाओं का सम्बन्ध कानों से होता है।

b. मुखग्रसनी Oropharynx

  • मुखग्रसनी Oropharynx कोमल तालू के नीचे का भाग है जो कंठच्छद तक होता है, यह भाग श्वास के साथ साथ भोजन के संवहन का कार्य भी करता है अथार्त इस भाग से श्वास एवं भोजन दोनों गुजरते हैं।

c. स्वर यन्त्र ग्रसनी Larynigopharynx

  • स्वर यन्त्र ग्रसनी Larynigopharynx कंठच्छद के पीछे वाला ग्रासनली से जुड़ा हुआ भाग है। 
  • इसमें दो छिद्र होते हैं पहला छिद्र भोजन नली का द्वार और दूसरा छिद्र श्वास नली का द्वार होता है। अर्थात यहां से आगे एक ओर भोजन तथा दूसरी ओर श्वास का मार्ग होता है।

ग्रसनी के कार्य Pharyngeal function

  • ग्रसनी श्वसन तंत्र का प्रमुख अंग है।
  • ग्रसनी अंग वायु एवं भोजन के संवहन का कार्य करता है।
  • श्वास के रुप में ली गई वायु इसी ग्रसनी से होकर श्वास नली में पहुंचती है।

नासमार्ग Nasal passages1.3 स्वरयंत्र Larynx

  • स्वरयंत्र श्वसन मार्ग का वह भाग जो ग्रसनी Pharynx को श्वासनली से जोड़ता है, कण्ठ या स्वरयंत्र कहलाता है। 
  • इसका मुख्य कार्य ध्वनि का उत्पादन करना है। ध्वनि उत्पादन के अतिरिक्त यह खाँसने, निगलने, श्वासोच्छवास तथा श्वसन मार्ग की सुरक्षा करने में सहायक होता है। 
  • स्वरयंत्र के प्रवेश द्वार पर एक पतला एवं पत्ती के समान कपाट (valve) होता है, जिसे एपिग्लॉटिस (Epiglottis) कहते हैं। 
  • जब कुछ अन्दर निगलना होता है तो एपिग्लॉटिस द्वार बन्द कर लेता है, जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश नहीं कर पाता है। यह क्रिया स्वतः सम्पन्न होती है।

1.4 श्वासनली Trachea

  • श्वासनली को श्वसन तंत्र का वक्षीय द्वार कहा जाता हैं श्वासनली के मुख्य दो भागों को ही ब्रोकोई कहा जाता हैं जो आगे जाकर ब्रोंकिओल बनाते हैं।
  • दांया ब्रोंकिओल तीन भागों में विभाजित होकर फेफड़े से जुड़ता हैं जबकि बांया ब्रोंकिओल दो भागों में विभाजित होकर बांये फेफड़े से जुड़ता हैं।

1.5 फेफड़ा Lung
फेफड़ा Lung

  • मानव शरीर मे एक जोड़ी फेफड़े (फुफ्फुस) होते हैं जिनमें वायु निः श्वसन प्रक्रिया के आधार पर वायु अंदर जाती हैं जब तक फेफड़ों के अंदर एवं बाहर वायु का दाब बराबर या समान न हो जाए।
  • इनका रंग हल्का लाल होता हैं जोकि स्पंज की तरह कार्य करते हैं दांया फेफड़ा बांए फेफड़े की अपेक्षा बड़े होते हैं। फेफड़ा के अंदर की वायु को रक्त में मिलाया एवं उससे अलग किया जाता हैं।

फेफड़ों के कार्य Lung function

  • फेफड़े श्वसन संस्थान के मुख्य स्पन्जी अंग होते हैं। ये संख्या में दो होते हैं एक दायां और एक बायां।
  • मनुष्य के फेफड़ों में वायुकोषों का घना जाल होता है। इस प्रकार ये वायुकोश फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते के समान रचना का निर्माण करते हैं।
  • फेफड़ों का हृदय के साथ सीधा सम्बन्ध होता है।
  • फेफड़े ज्यादातर वक्षीय-गुहा में समाये रहते हैं। 
  • हृदय से कार्बनडाइआक्साइड युक्त रक्त लेकर रक्त वाहिनी(पलमोनरी र्आटरी) फेफड़ो में आकर अनेकों शाखाओं में बट जाती है।
  • इस प्रकार बांये वायु मण्डल की आक्सीजन एवं शरीर के अन्दर कोशिकाओं से रक्त द्वारा लायी गयी कार्बनडाइआक्साइड गैस मे विनिमय (आदान-प्रदान) का कार्य इन फेफड़ों में ही सम्पन्न होता है।
  • फेफड़े शरीर की मध्य रेखा के दोनों पार्यों में स्थित होते हैं तथा मीडियास्टाइनम द्वारा एक-दूसरे से अलग रहते हैं।

1.6 डायफ्राम Diaphragm

  • वक्षीय गुहा का निचला फर्श एक पतले पट्ट द्वारा बन्द रहता है, जिसे डायफ्राम कहते हैं।
  • डायफ्राम लचीली मांसपेशियों से निर्मित श्वसन अंग है। 
  • श्वसन मांसपेशियों में यह सबसे शक्तिशाली मासपेशी होती हैं जिसका सम्बन्ध दोनों फेफड़ों के साथ होता है। 
  • यह वक्ष एवं उदर के बीच गुम्बद के समान पेशीय सेप्टम है। 
  • यह डायफ्राम दोनों फेफड़ों को नीचे की ओर साधकर रखता है।
  • यह वक्ष गुहा की तरफ उठा रहता है। उच्छवास Exhalation के समय डायफ्राम संकुचित (चपटा) हो जाता है।

डायफ्राम के कार्य Diaphragm functions

  • यह डायाफ्राम वक्ष एवं उदर को विभाजित करने का कार्य करता है।
  • फेफड़ों का इस डायाफ्राम के साथ जुड़ने के कारण जब फेफड़ों में श्वास भरता हैं तब इसका प्रभाव उदर (पेट) पर पड़ता है।
  • डायाफ्राम का दबाव नाचे की ओर होने के कारण उदर का विस्तार होता है जबकि इसके विपरित फेफड़ों से श्वास बाहर निकलने पर जब फेफड़ें संकुचित होते हैं।
  • तब डायाफ्राम का खिचाव ऊपर की ओर होने के कारण उदर का संकुचन होता है। इस प्रकार श्वसन क्रिया का प्रभाव उदर प्रदेष पर पडता है।

2. वायु परिवहन / संवेदन श्वसन तंत्र Air transport / sensing respiratory system

  • वायु श्वसन तंत्र के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचाना निः श्वसन कहलाता हैं जबकि फेफड़ों की वायु को श्वसन तंत्र के माध्यम से बाहर निकालना वायु परिवहन कहलाता हैं।


3. आन्तरिक श्वशन तंत्र Internal breathing system

  • फेफड़ों से वायु को शरीर के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं तक पंहुचाने में आन्तरिक श्वसन तंत्र कार्य करता हैं इसमें रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन और 80% आँक्सीजन एवं शेष अन्य गैसों को कोशिकाओं तक पंहुचाने का कार्य करता हैं जबकि कोशिकाओं से फेफड़ों तक कार्बनडाइआक्साइड को लसिका के माध्यम से पहुँचाया जाता हैं।


4. कोशिकीय श्वशन तंत्र Cellular respiratory system

  • खाघ पदार्थो के पाचन से प्राप्त होने वाले ग्लूकोज का कोशिका के अंदर अपघटन और इस अपघटन में उतपन्न ऊर्जा को मिलाकर ही (संपूण प्रक्रिया) को ही कोशिकीय श्वसन कहा जाता हैं।

कोशिकीय श्वसन के दो प्रकार होते हैं


  • 4.1 एनाक्सी श्वसन Anaxi respiration
  • 4.2 आक्सी श्वसन Oxy respiration

4.1 एनाक्सी श्वसन Anaxi respiration

  • एनाक्सी श्वसन कोशिका के अंदर आँक्सीजन की अनुपस्थिति में सम्पन्न होने वली प्रक्रिया हैं। इस प्रक्रिया में प्राप्त ग्लूकोज (आक्सीजन की अनुपस्थिति) में विघटित होकर या टूटकर लैक्ट्रिक अम्ल, वैक्ट्रीरिया, एथनाल एल्कोहल, पारुइक अम्ल आदि में परिवर्तित हो जाता हैं इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ग्लाइकोलिसिस कहा जाता हैं।
  • एनाक्सी श्वसन में अंतिम रूप पाईरुविक अम्ल का निर्माण होता हैं। ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया में (A.T.P. – एड्रीनों ट्राई फास्फेट) टूटकर 2 A.T.P. के अणु बनते हैं। एक A.T.P. के अणु से 8000 किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती हैं।

4.2 आक्सी श्वसन Oxy respiration

  • आक्सी श्वशन कोशिका के अंदर आक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज को विघटित करने वाली प्रक्रिया हैं। इस प्रक्रिया के संपन्न होने पर जल, कार्बनडाइआक्साइड के साथ-साथ ऊर्जा (2880 किलो कैलोरी) उतपन्न होती हैं।

श्वसन तंत्र की कुछ विशेष क्रियाएं

खांसना और छींकना

  • खांसना और छींकना दोनों ही श्वसन संस्थान की रक्षात्मक प्रतिवर्त क्रियाएं मानी जाती हैं।

आहे भरना, सिसकना, रोना, जम्हाई लेना तथा हंसना

आहे भरना, सिसकना, रोना, जम्हाई लेना तथा हंसना ये सब गहरी सांस क्रिया के ही अलग-अलग रूप है, जो भावावेगी स्थितियों के साथ संबंध रखते हैं।

खर्राटे लेना

  • खर्राटे लेना नींद के दौरान जब गले की पेशियां शिथिल हो जाती है तथा कोमल तालू के ढीले ऊतक एवं काकलक आंशिक रूप से ऊपरी वायुमार्ग को बंद कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप खर्राटे आने लगते हैं।

हिचकी

हिचकी डायाफ्राम में अचानक होने वाली अनैच्छिक ऐंठन को हिचकी कहते हैं। यह अक्सर श्वसन क्रिया के सामान्य पेटर्न में गड़बड़ी होने से पैदा होती है।


श्वसन तंत्र से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

  • वयस्कों में श्वसन दर 12-15 और बच्चों में 44 होती है।
  • 11 किमी से अधिक ऊंचाई पर ऑक्सीजन सिलेंडर काम नहीं करता है।
  • सामान्य व्यक्ति एक बार श्वसन में 500 मिली वायु अन्दर लेता है।
  • अधिक समय तक ऊंचाई पर रहने से रुधिर में RBCs अर्थात हीमोग्लोबिन और CO2 की मात्रा बढ़ जाती है।


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