मानव हृदय, मानव हृदय की संरचना, मानव हृदय के कार्य, हृदय के भाग

Ticker

6/recent/ticker-posts

मानव हृदय, मानव हृदय की संरचना, मानव हृदय के कार्य, हृदय के भाग

मानव हृदय, Human heart, मानव हृदय की संरचना, मानव हृदय की कार्य, मानव हृदय की परिभाषा, मानव हृदय के कार्य, हृदय के भाग

मानव हृदय Human heart


मानव हृदय Human heart

हृदय या दिल एक पेशीय (Muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (Vertebrate) का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है, जो (लगभग 66 वर्ष) एक जीवन काल में 2.5 बिलियन बार धड़कता है। मनुष्य का दिल 1 मिनट मे 70 मिली लीटर रक्त पम्प करता है,1 दिन मे 7600 लीटर(2000 gallons) तथा अपने जीवन काल मे 200 मिलियन लीटर रक्त पम्प करता है.!इसका भार औसतन महिलाओं में 250 से 300 ग्राम और पुरुषों में 300 से 350 ग्राम होता है।

मानव हृदय की परिभाषा

हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है।

मानव हृदय की प्रारंभिक विकास Human heart development

  • गर्भाधान (conception) के 21 दिनों पर मानव ह्रदय प्रति मिनट 70 से 80 बार धडकना शुरू कर देता है, धड़कन के पहले माह के लिए अस्तरित रूप से त्वरित होने लगता है।
  • मानव भ्रूणीय (Embryon) ह्रदय गर्भाधान के लगभग 23 दिन के बाद धडकना शुरू करता है, या आखिरी सामान्य माहवारी (menstrual period) (एल एम पी) के पांचवें सप्ताह के बाद धडकना शुरू करता है, इसी दिनांक को गर्भावस्था के दिनों की गणना के लिए काम में लिया जाता है। यह अज्ञात है कि मानव भ्रूण में पहले 21 दिनों तक एक क्रियात्मक ह्रदय की अनुपस्थिति में रक्त का प्रवाह कैसे होता है। मानव ह्रदय माँ के ह्रदय के धड़कन की दर, लगभग 75-80 बार प्रति मिनट की दर से धड़कने लगता है।
  • भ्रूण हृदय दर (EHR) अब धड़कन के पहले माह के लिए अस्तर के साथ त्वरित होने लगती है, जो प्रारंभिक 7 वें सप्ताह के दौरान 165-185 धड़कन प्रति मिनट पहुँच जाती है। (प्रारंभिक 9 वां सप्ताह LMP के बाद) यह त्वरण लगभग 3.3 धड़कन प्रति मिनट प्रति दिन होता है। या 10 धड़कन प्रति मिनट प्रति तीन दिन होता है, पहले माह में 100 धड़कन प्रति मिनट की वृद्धि होती है। LMP के बाद लगभग 9.1 सप्ताह पर, LMP के बाद 15 वें सप्ताह के दौरान यह लगभग 152 धड़कन प्रति मिनट तक कम या संदमित (+/-25 धड़कन प्रति मिनट) हो जाती है। 15 वें सप्ताह के बाद संदमन धीमा हो जाता है और यह औसतन 145 धड़कन (+/-25 धड़कन प्रति मिनट) प्रति मिनट की दर पर पहुँच जाता है। प्रतिगमन सूत्र जो भ्रूण के 25 मिली मीटर तक पहुँचने से पहले जो त्वरण का वर्णन करता है; शीर्ष से लेकर दुम तक की लम्बाई में या दिनों में आयु 9.2 LMP सप्ताह=EHR (0.3)+6।
  • जन्म से पहले नर और मादा के ह्रदय दर में कोई अंतर नहीं होता है, यह 1995 में डा.डायलन एंजियो लिलो के द्वारा पता लगाया गया।

मानव हृदय के कार्य

  • हृदय फेफड़ के मध्य में, थोड़ी सी बाईं ओर स्थित होता है। 
  • हृदय की कार्य-विधि हृदय एक पम्प की तरह कार्य करता है। 
  • यह एक दिन में लगभग 1 लाख बार धड़कता है एवं एक मिनट में 60-90 बार। 
  • यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को पम्प करता है। 
  • हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के ज़रिए मिलता है जो कोरोनरी आर्टरीज़ द्वारा प्रदान किया जाता है। 
  • हृदय दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं। 
  • हृदय का दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है। 
  • रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है। 
  • चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं। 

मानव हृदय की संरचना Human heart structure

मानव हृदय की संरचना

  • हृदय एक गुलाबी रंग का शंक्वाकार अन्दर से खोखला मांसल अंग होता है यह शरीर के वक्ष भाग के वक्ष भाग में फेफडो के बीच स्थित होता है।
  • यही रूधिर वाहिनियॉ रक्त को पूरे शरीर में ले जाती है। तथा फिर इसी से वापस लेकर आती है। सामान्यत: मनुष्य शरीर में रक्त की मात्रा 5-6 लीटर होती है।
  • मानव शारीरिक भाग का 20वॉ भाग रक्त होता है। रक्त पूरे शरीर में दौडता रहता है। परिसंचरण तत्रं में मुख्य रूप से हृदयए धमनी व शिरा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • हमारा हृदय एक पम्पिंग मशीन की तरह कार्य करता है जो अनवरत अशु़द्ध रक्त को फेफडो में शुद्ध करने तथा फिर शुद्ध रक्त को पूरे शरीर में भेजता है।
  • मानव हृदय अन्य स्तनधारियों की तरह चार कक्षीय होता है .
  • ऊपर के कक्ष अलिंद (Atrium) कहलाते हैं जबकि नीचे के कक्ष निलय (Ventricle) कहलाते हैं एवं कोरोनरी-सल्कस (Coronary sulcus) द्वारा अलग रहते हैं।
    मानव हृदय, Human heart, मानव हृदय की संरचना, मानव हृदय की कार्य, मानव हृदय की परिभाषा, मानव हृदय के कार्य, हृदय के भाग

हृदय भित्ति की तीन परते होता है

  1. पेरिकार्डियम
  2. मायोकार्डियम
  3. एण्डोकार्डियम

1. पेरिकार्डियम

  • पेरिकार्डियम दो कोषो से मिलकर बना है। बाहरी कोष तन्तुमय ऊतकों से निर्मित होता है तथा आन्तरिक रूप से सीरमी कला की दोहरी परत की निरन्तरता में पाया जाता है।
  • बाहरी तन्तुमय को ऊपर की ओर हृदय की बडी रक्त व लिशओं के टुनिका एड्वेन्टिशिया केद साथ निरन्तरता में होता है तथा नाचे की ओर डायाक्राम में लगा हुआ होता है।
  • सीरमी कला की बाहरी परत जिसे’’ पार्शिवक पेरिफार्शियम कहा जाता है। यह तन्तुमय कोष को आस्तरित करने का कार्य करती है।
  • अन्तरोगी पेरिकार्डिम हृदय पेशी से चिपटी हुयी होती है तथा पार्शिवक पेरिकार्डियम की निरन्तरता मे होती है।

2. मायोकार्डियम

  • मायोकार्डियम एक विशिष्ट प्रकार की हृदयपेशी से निर्मित होती है। यह पेशी केवल हृदय में ही पायी जाती है। इसमें दो तन्तु पाये जाते है। वे अनेच्छिक वर्ग के होते है।
  • मायोकार्डियम की मोटाई सब जगह एक जैसी नही होती है। शिखर भाग पर यह सर्वाधिक मोटी तथा आधार की ओर पतली होती है जबकि बाये निलय में अपेक्षाकृत मोटी होती है क्योंकि बॅाये निलय का कार्यभार अघिक होता है। मायोकार्डियम आलिन्दों में बहुत ही पतली होती है।

3. एण्डोकार्डियम

  • हृदय भित्ति की सबसे भीतरी परत एण्डाकार्डियम इसका निर्माण चपटी कला कोशिकाओं से होता है। इस परत से हृदय के चारों कक्ष एवं कपाट आच्छदित रहते है।

हृदय के कोष्ठक

  • मानव हृदय दायें एवं बायें भागों मे बॅटा हुआ होता है। यह विभाजनपरक पेशी पर (septum)के द्वारा होता है। ये दायें एवं बॉये भाग दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अलग होते है।
  • हृदय के दायें भाग का संबंध अशुद्ध से तथा बायें भाग का संमंध शुद्ध रक्त के लेन-देन से होता है दायॉ एवं बायॉ भाग फिर से अनुप्रस्थ पर से विभक्त होता है जिससे एक ऊपर एवं नीचे का भाग बनता है। इस प्रकार हृदय का समस्त आन्तरिक भाग चार कक्षो में विभाजित हो जाता है।
  • बायीं ओर के दोनो कक्ष अर्थात बायॉ आलिन्द एवं बायीं निलय एक छिद्र द्वारा आपस मे सम्बद्ध होते है।
  • ठीक इसी प्रकार की व्यवस्था बॉयी तरफ होती है अर्थात् दायॉ आलिन्द एवं दायॉ निचल भी यह एक छिद्र द्वारा आपस मे सम्बद्ध रहते है इन छिद्रो पर वाल्व पाये जाते है। ये वातव इस प्रकार से लगे हुये होते है कि रक्त मात्र आलिन्द मे से निलय में तो जा सकता है किन्तु वापस लौट कर नही आ सकता।
  • रक्त को लाने एवं ले जाने वाली रक्त नलिकायें भी अपने से संबन्धित कोष्टक (कक्ष) में ही खुलती है।

हृदय के निम्न चार कोष्ठक होते हैं

  1. दायॉ आलिंद यह दायी ओर ऊपरी कक्ष
  2. दायॉ निलय यह दायी ओर का निचला कक्ष
  3. बायॉ आलिन्द यह बॉयी ओर का ऊपरी कक्ष।
  4. बायॉ निलय यह बॉयी ओर का नीचे कक्ष।

1. दायॉ आलिन्द

  • हृदय के इय भाग मे सम्पूर्ण शरीर का ऑक्सीजन रहित अशुद्ध रक्त आकर इकट्ठा होता है। उध्र्वमहाशिरा शरीर के ऊपरी हिस्से से तथा निम्न महाशिरा निचले हिस्से से अशुद्ध रक्त को दॉयें आलिन्द में पहुॅचाने का कार्य करती है।
  • इस कक्ष की शिलिया एवं पतली होती है क्योंकि इसे रक्त को पम्प करने का काम ज्यादा नही करना होता है। इस कक्ष का मुख्य कार्य केवल खून को गृहण करने का है।

2. दायॉ निलय

  • हृदय का दूसरा कक्ष है दायॉ निलय होता हैं दायां निलय में अशुद्ध रक्त के पहुॅचने बाद के यह एट्रियॉ वेन्ट्रिकल छिद्र से होते हुए दायें वेन्ट्रिकल में आता है और वहॉ से फुफ्कुसीय धमनियों के द्वारा फेफड़ो में शुद्ध होने के लिए चला जाता है।
  • नोट:- फुफ्कुसीय धमनी के अलावा अन्य सभी धमनियो मे शुद्ध रक्त ही प्रभावित होता है। दायें निलय की शिरियॉ दॅाये एट्रियम की तुलना मे अधिक मोटी होती है क्योंकि इसे रक्त को पम्प करने का कार्य अपेक्षाकृत अधिक करना पडता है।

3. बायॉ आलिन्द

  • बायॉ आलिन्द हृदय की बायें भाग का ऊपर वाला कक्ष है। आकार की दृष्टि से चर दायें एट्रियम से थोड़ा से छोटा होता है। 
  • दायें एट्रियम की तुलना में इसकी भित्तियॉ भी थोड़ी मोटी होती है। 
  • बायॉ आलिन्द मे चार फुफ्कुसीय शिरायें खुलकर शुद्ध रक्त को बायें एट्रियम तक ले जाने का कार्य करती है।

4. बायॉ निलय

  • हृदय का चौथा कक्ष बायॉ निलय है। यह भाग का निचला तथा हृदय का सभी कक्षो में सर्वाधिक बड़ा कक्ष है। इसकी भित्तियॉ शेष सभी कक्षो की अपेक्षा मोटी होती है। इसमें महाधमनी नामक एक छिद्र होता है, जिससे महाधमनी निकलकर शरीर के विविध भागों मे रक्तापूर्ति का कार्य करती है।
  • जैसे की बायें एट्रियम मे संकुचन होता है शुद्ध रक्त बायें वेन्ट्रिकल में आ जाता है। बायें वेन्ट्रिकल के संकुचित होते ही शुद्ध रक्त महाधमनी के छिद्र को खोल देता है और उसी मे से होकर वह प्रभावित होता है।
  • इस प्रकार स्पष्ट है कि बायॉ निलय शरीर के सभी भागो में शुद्ध रक्त पहुचाने मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।

हृदय के कपाट

हृदय मे रक्त प्रवाह गलत दिशा मे न हो सके इस हेतु ही कपाठ या वाल्व होते है।

हृदय मे मुख्य रूप से चार वाल्व होते है।

  1. टाइकस्पिड वाल्व
  2. माइटल वाल्व
  3. पल्मोनरी वाल्व
  4. एऑटिकल वाल्व

1. टाइकस्पिड वाल्व

  • दायें आलिन्द तथा बायें निलय के बीच में स्थित छेद , जिसमे ढॅाचा एट्रियोवोन्ट्रिकुलर छिद्र कहा जाता है, उसके वाल्व को ट्राइकस्पिड या जिकपर्दी वाल्व कहते है। इस वाल्व मे तीन त्रिकोण के आकार वाले कास्पस पाये जाते है।
  • वाल्व के इन अस्पस का एट्रियेवेन्द्रिकुलर छेद के ऊपर पूरी तरह से नियंत्रण होता है आलिन्द मे संकुचन के कारण खून कस्पस को धक्का देता है और वेन्ट्रिकल मे पहॅुचता हैं।
  • इस प्रक्रिया के ठीक बाद ही कस्पस बन्द हो जाते है और ठीक इसी क्षण क्षपिलरी केशियों में संकुचन हाने के करण ये कांर्डी टेन्डिनी पर खिंचाव डालती है, परिणामस्वरूप कस्पस आलिन्द में नही अकेले जाते है और खून वापस नहीं लौट पाता है।

2. माइटल वाल्व

  • बायें आलिन्द तथा दॉयें वेन्ट्रिकल के मध्य के बॉयें एट्रियोवेन्ट्रिकुलर छिद्र का कपाट द्विकपर्दी कपाट या माइट्रल वाल्व या बाइकस्पिटु वाल्व कहलाता है।
  • इसमे दो कस्पस (cusps) होने के कारण ही इसे द्विकपर्दी कपाट करा जाता है। इसकी संरचना भी ट्राइकस्पिटु वाल्व के समान ही होती है। इसका कार्य है – बायें वेन्ट्रिकल के संकुचित होने पर रक्त को बायें एट्रियम मे वापस न जाने देना।

3. पल्मोनरी वाल्व

  • दायें वेन्ट्रिकल एवं फुफ्कुसीय धमनी के बीच का वाल्व पल्मोनरी वाल्व या फुफ्कुसीय कपाट कहलाता है। इसे अर्द्धचन्द्राकार वाल्व के साथ जाना जाता है क्योंकि इसमें तीन अर्द्धचन्द्राकार कस्पस होते हैं।

4. एऑटिकल वाल्व

  • महाधमनी कपाट बायें वेन्ट्रिकल एवं महाधमनी के मध्य स्थित होता है। रचना तथा कार्य की दृष्टि से यह पल्योनवरी वाल्व के समान ही होता है।


➦ नोट - इस पेज पर आगे और भी जानकारियां अपडेट की जायेगी, उपरोक्त जानकारियों के संकलन में पर्याप्त सावधानी रखी गयी है फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि अथवा संदेह की स्थिति में स्वयं किताबों में खोजें तथा फ़ीडबैक/कमेंट के माध्यम से हमें भी सूचित करें।


इन्हे भी पढ़े  ➦


➦ भारत का उपराष्ट्रपति | Vice President | India Vice President 
➦ भारत के राष्ट्रपति | राष्ट्रपति का चुनाव | राष्ट्रपति की शक्तियाँ | President of India
➦ भारत के नीति निर्देशक तत्व | Policy Principles of India 
➦ मौलिक अधिकार | Fundamental Rights | Indian Constitution
➦ मूल कर्तव्य | मौलिक कर्तव्य | Fundamental Duties | Fundamental Of India
➦भारतीय संविधान का इतिहास | History of Indian Constitution 
➦भारतीय संविधान का  विस्तृत अध्ययन | Indian Constitution | Indian Constitution In Hindi
➦ भारतीय संविधान के स्रोत Sources of Indian Constitution 
➦ भारत के संविधान संशोधन Constitution of India amendment

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ