वीरनारायण सिंह का विद्रोह
सोनाखान का विद्रोह
सोनाखान का विद्रोह, वीरनारायण सिंह का विद्रोह
सन 1856-57 के समय हुआ एक महत्वपूर्ण विद्रोह था जिसने छत्तीसगढ़ की जनता के मन में क्रांति की भावना और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह को नई दिशा दी। यही वो प्रथम घटना थी जिसने छत्तीसगढ के जनता में देश भक्ति की भावना उत्पन्न किया।
सोनाखान विद्रोह की पृष्ठ्भूमि
- सोनाखान के जमींदार वीर नारायण सिंह एक नेकदिल इंसान थे। वहां जनता के सुख दुःख में सहभागी होते थे। इसलिए जनता में लोकप्रिय थे।
- देवरी के जमींदार महाराज साय उनकी लोकप्रियता से ईर्षा करते था। तभी सोनाखान में 1856 में भयंकर अकाल पड़ा। आकाल इतना था की लोगों के पास खाने के लिए अनाज नही था। इस विकट परिस्थिति में नारायण सिंह ने अपना अन्न भंडार अकाल पीड़ितों को बाँट दिया। अन्न कम पड़ा तो माखन बनिया जो एक व्यापारी था का गोदाम से अनाज गरीबों में बाँट दिया। माखन व्यापारी ने चोरी और डकैती का आरोप लगा कर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर से कर दी।
- 24 अक्टूबर 1856 को रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने वीर नारायण सिंह को संबलपुर से पकड़ कर रायपुर जेल में बंद कर दिया।
- 10 मई 1857 की सैनिक क्रांति 1857 का विद्रोह की अलख पुरे देश में फ़ैल गयीं थी। यह विद्रोह की ललक रायपुर सेना भी भड़क उठी। 27 अगस्त 1857 को तीसरी देशी रेजिमेंट के सैनिकों की मदद से वीर नारायण सिंह जेल से सुरंग बनाकर फरार हो गया।
- वीर नारायण सिंह सोनाखान पहुँच कर 500 सैनिकों का दल गठित किया। जिसका उद्देश्य अंग्रेजी सेना को सोनाखान से खदेड़ना था।
वीरनारायण सिंह और अंग्रेज
- वीरनारायण सिंह के जेल से फरार होने पर रायपुर डिप्टी कमिश्नर ने स्मिथ के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना को सोनाखान भेज दिया। कैप्टन स्मिथ की सेना की सहायता देवरी के जमींदार महराज साय ने किया।
- महराज साय का वीर नायायण सिंह के साथ खानदानी दुश्मनी था। इसी का बदला लेने के लिए महराज साय ने अंग्रेजों की मदद की।
- सोनाखान के समीप एक नाले के पास स्मिथ की सेना और वीर नारायण सिंह की सेना का भिडंत हुआ। शुरुवात में अंग्रेज पिछड़ने लगे लेकिन बाहरी मदद से वहां संभल गया।
- अग्रेजों ने सोनाखान के खाली बस्ती में आग लगा दी। सोनाखान जल गया। स्मिथ ने पहाड़ी के चारों ओर से वीर नारायण सिंह को घेर लिया। भारी गोली भारी हुई। अंत में वीर नारायण सिंह पकड़ा गया और फिर से रायपुर जेल में बंद कर दिया गया।
वीर नारायण सिंह को फांसी
- जेल में बंद वीर नारायण सिंह पर देश द्रोह का मुकदमा चला। कोर्ट ने वीर नारायण सिंह को फासी की सजा सुनाई।
- 10 दिसम्बर 1857 को वीर नायारण को रायपुर के जय स्तम्भ चौक पर प्राणदण्ड (फ़ासी) दे दिया गया।
- रायपुर के जय स्तम्भ चौक आज भी वीर शहीद नारायण सिंह की बलिदान का गुणगान करती है।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नायारण सिंह थे।
- वीर नारायण सिंह के पुत्र गोविन्द सिंह को भी अंग्रेजो ने गिरफ्तार कर लिया। गोविन्द सिंह को नागपुर जेल में कैद कर लिया। गोविन्द सिंह को 1860 में रिहा कर दिया।
- सोनाखान में महाराज साय ने कब्जा कर लिया था क्योकि अंग्रेजों की मदद वीर नारायण सिंह को पकड़ने के बदले सोनाखान की जमींदारी दे दी थी। गोविन्द सिंह ने महराज साय की हत्या कर दी।
महत्वपूर्ण तथ्य
- सोनाखान के विद्रोह के समय नागपुर में ब्रिटिश कमिश्नर मि. पलाउडन थे।
- रायपुर में डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी. एलियट थे।
- विद्रोह को दबाने वाले पुलिस आधिकारी कप्तान स्मिथ था।
- सोनाखान वर्तमान में छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिला के अंतर्गत आता है।
- शहीद वीर नारायण सिंह बिंझवार जनजाति के थे।
- इस प्रकार छत्तीसगढ के प्रथम शहीद स्वतंत्रता सग्राम के एक आदिवासी था।
- 10 दिसम्बर 1857 को वीर नायारण को रायपुर के जय स्तम्भ चौक पर प्राणदण्ड (फ़ासी) दिया गया था।
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