छत्तीसगढ़ में क्रांतिकारी आंदोलन
छत्तीसगढ़ में क्रांतिकारी आंदोलन
- छत्तीसगढ़ में क्रांतिकारी आंदोलन का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है और भारत की आजादी में छत्तीसगढ़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
- सन् 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर 1947 के आजादी तक यहां भी अंग्रेजों के खिलाफ लगातार संघर्षों का दौर चलता रहा है. आदिवासियों ने तो इससे पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था,
- छत्तीसगढ़ भी भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की अनगिनत इतिहास को समेटे हुआ है. प्रदेश में क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत 1857 की पहली क्रांति के साथ हुआ, लेकिन छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ बस्तर के आदिवासियों ने इससे पहले ही बिगुल फूंक दिया था. सन् 1818 में अबुझमाड़ इलाके में गैंद सिंह के नेतृत्व में आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल फूंका था.
आखिर किस तरह रही छत्तीसगढ़ में क्रांतिकारी आंदोलन की पृष्ठभूमि, आगे पढ़ते है -
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सोनाखान विद्रोह :-
वीरनारायण सिंह
- सोनाखान का विद्रोह 1856 में हुआ था। यह विद्रोह सोनाखान के जमींदार वीरनारायण सिंह ने अंग्रेजो के विरुद्ध किया था। उस समय सोनाखान रायपुर जिले के बलौदाबाजार तहसील में आता था। सन 1856 में सोनाखान तहसील में अकाल पड़ा। यह अकाल इतनी भयंकर थी की वंहा के स्थानीय निवासी भूख के कारण मरने लगे थे।
- वीरनारायण को जब यह बात पता चली तो उसने कसडोल नामक स्थान में उपस्थित एक व्यापारी की गोदाम की अनाज अपनी भूखी जनता में बाँट दी। वीरनारायण सिंह ने इसकी जानकारी तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर को उसी समय बता दी थी । परन्तु शासकीय बयान में डिप्टी कमिशनर ने अपना बयान तोड़ मडोकर पेश किया। इस वजह से वीरनारायण सिंह को जेल भेज दिया गया।
- पैदल सेना की मदद से वीरनारायण सिंह जेल से भागने में कामयाब हुए। पर कुछ समय बाद ही लेफ्टिनेंट स्मिथ ने जमीदारो के मदद से वीरनारायण सिंह को पुनः पकड़ लिया। तत्कालीन डिप्टी कमिशनर इलियट ने वीरनारायण सिंह पर राजद्रोह का आरोप लगाकर फांसी की सजा सुना दी।
- 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तम्भ चौक पर वीरनारायण सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
- वीरनारायण सिंह छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम शहीद के नाम से जाने जाते है।
- वर्तमान समय में इनके नाम पर इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम नया रायपुर में स्थित है।
वीरनारायण सिंह |
- सोनाखान का विद्रोह 1856 में हुआ था। यह विद्रोह सोनाखान के जमींदार वीरनारायण सिंह ने अंग्रेजो के विरुद्ध किया था। उस समय सोनाखान रायपुर जिले के बलौदाबाजार तहसील में आता था। सन 1856 में सोनाखान तहसील में अकाल पड़ा। यह अकाल इतनी भयंकर थी की वंहा के स्थानीय निवासी भूख के कारण मरने लगे थे।
- वीरनारायण को जब यह बात पता चली तो उसने कसडोल नामक स्थान में उपस्थित एक व्यापारी की गोदाम की अनाज अपनी भूखी जनता में बाँट दी। वीरनारायण सिंह ने इसकी जानकारी तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर को उसी समय बता दी थी । परन्तु शासकीय बयान में डिप्टी कमिशनर ने अपना बयान तोड़ मडोकर पेश किया। इस वजह से वीरनारायण सिंह को जेल भेज दिया गया।
- पैदल सेना की मदद से वीरनारायण सिंह जेल से भागने में कामयाब हुए। पर कुछ समय बाद ही लेफ्टिनेंट स्मिथ ने जमीदारो के मदद से वीरनारायण सिंह को पुनः पकड़ लिया। तत्कालीन डिप्टी कमिशनर इलियट ने वीरनारायण सिंह पर राजद्रोह का आरोप लगाकर फांसी की सजा सुना दी।
- 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तम्भ चौक पर वीरनारायण सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
- वीरनारायण सिंह छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम शहीद के नाम से जाने जाते है।
- वर्तमान समय में इनके नाम पर इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम नया रायपुर में स्थित है।
हनुमान सिंह का विद्रोह :-
- हनुमान सिंह बैसवारा के राजपूत थे और रायपुर बटालियन में मैगनीज लश्कर के पद थे। इसे छत्तीसगढ़ का मंगल पांडेय कहा जाता है। यह अंग्रेजो के दमनकारी नीतियों से परेशान थे।
- इन्होने अपने 17 साथियो के साथ मिलकर मेजर सिडवेयर की हत्या कर दी।
- 18 जनवरी 1858 को हनुमान सिंह और उसके सभी साथी गिरफ्तार कर लिए गए। पर हनुमान सिंह वंहा से भागने में कामयाब हो गए।
- हनुमान सिंह के साथियो को 22 जनवरी 1858 को फांसी दे दी गयी।
- हनुमान सिंह बैसवारा के राजपूत थे और रायपुर बटालियन में मैगनीज लश्कर के पद थे। इसे छत्तीसगढ़ का मंगल पांडेय कहा जाता है। यह अंग्रेजो के दमनकारी नीतियों से परेशान थे।
- इन्होने अपने 17 साथियो के साथ मिलकर मेजर सिडवेयर की हत्या कर दी।
- 18 जनवरी 1858 को हनुमान सिंह और उसके सभी साथी गिरफ्तार कर लिए गए। पर हनुमान सिंह वंहा से भागने में कामयाब हो गए।
- हनुमान सिंह के साथियो को 22 जनवरी 1858 को फांसी दे दी गयी।
सुरेंद्रसाय का विद्रोह :-
बस्तर का भूमकाल आंदोलन :-
सेनापति गुण्डाधुर |
- 1910 में बस्तर का भूमकाल आंदोलन ने अंग्रेज शासन को हिला के रख दिया था, बस्तर में हुए
भूमकाल आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध आदिवासियों का एक सबसे बड़ा सशस्त्र आंदोलन था. बस्तर में लाल कालेन्द्र सिंह और रानी सुमरन कुंवर ने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ विद्रोह का ऐलान किया, इस विद्रोह का सेनापति गुण्डाधुर को चुना गया था.
छुई खदान जंगल सत्याग्रह :-
- 1938 में छुई खदान जंगल सत्याग्रह हुआ जिसके नेता थे समारू बरई। उस समय छुई खदान रियासत में कांग्रेस की स्थापना हुई थी। जिसका उद्देश्य जनता को सरकारी शोषण से बचाना था। जनता ने मिल कर वंहा जंगल सत्याग्रह आरम्भ किया था।
बदराटोला जंगल सत्याग्रह :-
- 21 जनवरी 1939 को बदराटोला नमक गांव से जंगल सत्याग्रह की शुरवात हुई। जिसके नेता रामधीन गोंड थे। इस आंदोलन में करीब 300 - 400 लोग शामिल हुए थे। इस सत्याग्रह को रोकने के लिए सरकार ने कई हथकंडे अपनाये। लोगो को गिरफ्तार किया गया।
- अहिंसावादी आंदोलन पर अंग्रेजो ने लाठिया बरसाई। कई लोग घायल हुए पर लोगो ने सत्याग्रह करना जारी रखा। जब अंग्रेज नाकाम हो रहे थे तो उन्होंने निहत्थे जनता पर गोलिया चलाई जिसके चलते इस आंदोलन के नेता रामधीन गोंड की मृत्यु हो गयी और कई लोग घायल हुए।
रायपुर षड़यंत्र केस :-
- 1942 में परसराम सोनी ने अंग्रेजो के खिलाफ एक बड़ी घटना को अंजाम देने की यजना बनाई थी।परन्तु शिवनंदन ने अंग्रजो को यह बात बता दी और अंग्रजो ने परसराम सोनी को गिरफ्तार कर लिया। 7 साल की सजा हुई।
- 26 जून 1946 को मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल की कोशिस के बाद उन्हें छुड़वाया गया।
रायपुर डायनामाइट कांड :-
- बिखल नारायण अग्रवाल ने कैदियों को रिहा करवाने के लिए रायपुर जेल की दिवार को डायनमाइट से उड़ाने की योजना बनाई थी। परन्तु योजना के चलते जेल के दिवार टूटी जरूर लेकिन कैदियों को रिहा नहीं करा पाए।
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