हल्बा विद्रोह Halba Vidroh
हल्बा विद्रोह
- सन – 1774 ई. से 1779 ई. के बिच
- नेत्रित्व करता – अजमेर सिंह
- शासक – दरियादेव
- उद़देश्य – उत्तराधिकार हेतु
- विशेष – छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह
- बस्तर रियासत की राजधानी जगदलपुर थी। डोंगर क्षेत्र बस्तर रियासत का एक महत्वपूर्ण भाग था। बस्तर रियासत के राजा डोंगर को उपराजधानी बनाकर अपने पुत्रो को डोंगर क्षेत्र का गवर्नर नियुक्त किया करते थे।
- ऐसे ही बस्तर के राजा श्री दलपत सिंह ने अपने पुत्र अजमेर सिंह को डोंगर का गवर्नर बनाया। दलपत सिंह के बाद जब दरियादेव सन 1774 में बस्तर का राजा बना। दरियादेव ने डोंगर क्षेत्र की अपेक्षा की और अपना अधिकार का दावा करने लगा। दरियादेव ने डोंगर क्षेत्र पर हमला कर दिया। हल्बा विद्रोहियों ने दरियादेव की सेना पराजित कर दिया और जगदलपुर पर कब्जा कर लिया। दरियादेव भागकर जैपुर राज्य में आश्रय ले लिया।
- राज्य को वापस पाने के लिए ब्रिटिश कंपनी, मराठा साम्राज्य, और जैपुर के राजा से अलग -अलग संधि कर ली और 20000 सैनिकों के साथ जगदलपुर पर आक्रमण किया और हल्बा विद्रोहियों को पराजित कर बस्तर रियासत पर अपना अधिकार पुन: प्राप्त कर लिया। इस युद्ध में अजमेर सिंह मारा गया। हल्बा विद्रोहियों की बेरहमी से हत्या कर दी गयी।
- विद्रोह की समाप्ति के बाद बस्तर के राजा दरियादेव ने कोटपाड की संधि 6 अप्रैल 1778 को एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया जिसके अनुसार उनसे भोसलों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। जयपुर के राजा को सहायता के बदले पुरस्कार स्वरुप कोटपाड परगना देना पड़ा।
- इस विद्रोह ने सभी आदिवासियों को एक जुट किया परंतु मराठी दीवान और अंग्रेजों ने साथ हाथ मिलाते हुए 1779 में बेकसूर हलबी लोगो और सैनिको को मारते हुए इस विद्रोह का अंत किया।
- और इस तरह 1774 का हलबा विद्रोह बस्तर में आगे सभी विद्रोहों का प्रेरक बना।
छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह
- यह छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह माना जाता है। यह विद्रोह डोंगर क्षेत्र में 1774 ई. से 1779 ई. तक चला। काकतीय शासक इस विद्रोह को रोकने में असमर्थ रहे और वे मराठो के अधीन हो गए।
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